ESA ने स्टडी के प्रमुख लेखक इगोर मित्रोफानोव के हवाले से कहा, “TGO के साथ हम इस धूल भरी परत से एक मीटर नीचे तक देख सकते हैं कि मंगल की सतह के नीचे क्या चल रहा है।
FREND के ऑब्जर्वेशन के आधार पर शोधकर्ताओं का मानना है कि घाटी में हाइड्रोजन की भारी मात्रा, पानी के मॉलिक्यूल्स में बंधी है।
स्टडी के सह-लेखक एलेक्सी मालाखोव ने बताया कि यह सब पता लगाने के लिए FREND के न्यूट्रॉन टेलीस्कोप का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने बताया कि जब “गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणों के रूप में बहुत ज्यादा ऊर्जा से भरे पार्टिकल्स मंगल के संपर्क में आते हैं, तो न्यूट्रॉन बनते हैं। सूखी मिट्टी गीली मिट्टी की तुलना में अधिक न्यूट्रॉन का उत्सर्जन करती है। इससे रिसर्चर्स के लिए अनुमान लगाना संभव हो जाता है कि मिट्टी में कितना पानी है।
रिसर्चर्स ने निष्कर्ष पर आने से पहले मई 2018 से फरवरी 2021 तक FREND के आब्जर्वेशन को स्टडी किया। उनके अनुसार, मंगल की वैलेस मेरिनेरिस घाटी में पानी होने की तुलना पृथ्वी के पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र से की जा सकती है, जहां सूखी मिट्टी के नीचे बर्फ स्थायी रूप से मौजूद रहती है।
मंगल के निचले अक्षांशों पर पानी की बर्फ असामान्य है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वहां तापमान इतना अधिक है कि पानी के अणु वाष्पित हो जाते हैं। सह-लेखक हाकन स्वेडहेम ने कहा कि यह इस खोज एक पहला कदम है, लेकिन इसे सुनिश्चित करने के लिए और ऑब्जर्वेशन की जरूरत है। वैलेस मेरिनरिस में पानी के रिजरवॉयर की खोज करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि भविष्य के कई मिशन इससे जुड़े हुए हैं।
वैलेस मेरिनरिस की तुलना पृथ्वी के Grand Canyon से की जाती है, जो दस गुना छोटा है। मंगल की घाटी हमारे सोलर सिस्टम की सबसे बड़ी घाटी है।
ESA के ExoMars TGO प्रोजेक्ट के वैज्ञानिक कॉलिन विल्सन ने कहा कि मंगल के मौजूदा पानी को जानने से रिसर्चर्स को यह समझने में मदद मिलेगी कि ग्रह में प्रचुर मात्रा में मौजूद पानी का क्या हुआ। इससे ग्रह पर जीवन की पिछली संभावनाओं का भी पता भी लगाया जा सकेगा।