Pre-conception Diet Protects Children from Obesity : प्रेग्नेंट वुमेन के गुड और हेल्दी डाइट लेने से बच्चे के सेहतमंद होने की बात तो कही जाती रही है. लेकिन अब यूनिवर्सिटी ऑफ साउथम्पटन (University of Southampton) की एक नई स्टडी में बताया गया है कि यदि गर्भाधान (conception) से पहले भी महिलाओं को सही खाना मिले, तो होने वाले बच्चे में मोटापा (obesity) का खतरा कम होता है. दुनियाभार में बच्चों के मोटापाग्रस्त होने की दर बढ़ रही है. एक अनुमान के अनुसार, चीन के बाद भारत दुनिया में दूसरे नंबर का देश है, जहां लगभग 15 प्रतिशत बच्चे मोटापा से ग्रस्त हैं. जिन प्राइवेट स्कूलों में हाई इनकम ग्रुप परिवार के बच्चे पढ़ते हैं, वहां ऐसे बच्चों की संख्या तो 35-40 प्रतिशत तक पाई जाती है. कमोबेश यही हाल ब्रिटेन का भी है. जहां पांच साल से कम उम्र के एक चौथाई बच्चे मोटापा से ग्रस्त हैं. जबकि सैंकडरी स्कूल पहुंचते-पहुंचते ऐसे बच्चों की संख्या एक तिहाई तक हो जाती है. इन बच्चों में आगे भी मोटापा बढ़ने के जोखिम रहते हैं, जिनमें उनकी अनहेल्दी (जो हेल्थ की दृष्टि से सही नहीं माने जाते हैं) डाइट भी एक बड़ा कारण होती है. इस स्टडी का निष्कर्ष इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ओबीसिटी (International Journal of Obesity) में प्रकाशित हुआ है.
स्टडी का स्वरूप
रिसर्चर्स ने यूके साउथम्पटन वुमेन्स सर्वे (UK Southampton Women’s Survey) में शामिल 2963 माताओं और बच्चों के जोड़े के डाइट का विश्लेषण किया. इस स्टडी में उन महिलाओं को शामिल किया गया, जो पहली बार मां बनना चाहती थीं. उनके अपने और बच्चे के खानपान से संबंधित जानकारी के आधार पर प्रश्नावली (questionnaire) भरकर डाटा तैयार किया गया.
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इसमें महिलाओं से गर्भधारण करने से पहले और गर्भवती होने के 11वें से 34वें सप्ताह के दौरान खानपान से संबंधित सवाल पूछे गए. यह भी पूछा गया कि उनके बच्चे ने 6 माह, एक साल, तीन साल, 6 साल और आठ-नौ साल की उम्र में क्या खाया. इन सूचनाओं के आधार पर प्रत्येक मां-बच्चे के जोड़े का एक संयुक्त डाइट गुणवत्ता स्कोर बनाया गया. इस स्कोर को पांच कैटेगरी में बांटा गया. पूअर, पूअर-मीडियम, मीडियम, मीडियम-बेटर और बेस्ट.
क्या कहते हैं जानकार
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथम्पटन में स्टैटिस्टिकल एपडेमियोलॉजी (Statistical Epidemiology) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ साराह क्रोजिअर (Dr Sarah Crozier) के नेतृत्व में की गई इस स्टडी में पाया है कि आठ-नौ साल के उन बच्चों के मोटापाग्रस्त होने का खतरा ज्यादा होता है, जिनकी माताओं ने गर्भावस्था के दौरान या उससे पहले पौष्टिक व पूरा खाना नहीं खाया.
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रिसर्चर्स ने पाया कि महिलाओं के लिए वह समय काफी अहम होता है और यदि उन दिनों में महिलाओं के खानपान का ध्यान रखा जाए तो आने वाले बच्चों में मोटापा को प्रभावी तौर पर काबू किया जा सकता है.
लॉन्ग टर्म इफैक्ट
– जिन महिलाओं की शिक्षा कम थी या जो गर्भधारण के पहले स्मोकिंग करती थीं और ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स वाली थी, उन्हें उनके बच्चे के साथ खराब खानपान वाले समूह में रखा गया.
– जब बच्चे आठ-नौ साल के हुए तो रिसर्चर्स ने डुअल-एनर्जी एक्स-रे अब्जॉर्प्समेट्री (DXA)स्कैन के जरिए उनके शरीर में फैट टिश्यू की मात्रा का आंकलन किया. बच्चे का बीएमआई भी मापा गया.
– देखा गया कि यदि माताओं-बच्चों के जोड़े कम गुणवत्ता डाइट ग्रुप वाले थे तो ऐसे बच्चों में बॉडी फैट का डीएक्सए प्रतिशत और बीएमआई आठ-नौ साल की उम्र से ज्यादा था.
-रिसर्चर्स का कहना है कि ये स्टडी बताती है कि बच्चों में शुरुआत से ही और माताओं के गर्भधारण करने या उससे पहले ही जितनी जल्द खानपान का उचित ध्यान रखा जाएगा, तो बच्चों में मोटापे का रिस्क उतना ही कम हो सकता है.
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