Friday, November 12, 2021
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प्रियंका गांधी वाड्रा कर रही हैं सचिन पायलट की पैरवी, कारण यूपी से जुड़ा है


प्रियंका सिंधिया की जगह पायलट को देना चाहती हैं। सचिन पायलट न केवल एक मजबूत गुर्जर चेहरा हैं, बल्कि जमीनी स्तर पर उनका जुड़ाव भी है जो उन्हें उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए अहम बनाता है।

 

राजस्थान में अचानक से मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा तेज होना, सचिन पायलट का राहुल और प्रियंका से मिलना कोई संयोग नहीं है। यहाँ जिस तरह की राजनीतिक उठापटक देखने का मिल रही है उसे देखकर आप यही अंदाजा लगाएंगे कि ये सब 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए किया जा रहा है, परंतु ये सब उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए किया जा रहा है। राजस्थान की समस्या के सुलझने से सचिन पायलट को यूपी चुनावों के लिए तैयार करना आसान हो जायेगा। यही कारण है कि राजस्थान के मंत्रिमंडल विस्तार जल्दी करने और पायलट गुट के समर्थकों को कैबिनेट में शामिल करने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।

सचिन पायलट के लिए कैसे फायदेमंद हैं ?

विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में जातिय समीकरण की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-गुर्जर काफी अहम माने जाते हैं और यहां भाजपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है। एक तरफ जाट वर्ग भाजपा के हाथों से छिटक रहा है तो दूसरी तरफ गुर्जर भी भाजपा से नाराज हैं। ऐसे में कांग्रेस इस मौके को अवश्य ही भुनाना चाहेगी और प्रियंका गांधी इसे अंजाम देने में लगी हैं। प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव होने के साथ ही उत्तर प्रदेश की प्रभारी भी हैं और राजस्थान की राजनीति में उनकी सक्रियता से साफ है कि वो सचिन पायलट को लेकर उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति बना रही हैं।

दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट-गुर्जर बहुल क्षेत्र माना जाता है। गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, सहारनपुर, मेरठ और बुलंदशहर में गुर्जरों का दबदबा है। गौतमबुद्धनगर के दादरी शहर को गुर्जरों की राजधानी तक कहा जाता है। जब जाट वर्ग के अमित चौधरी को दादरी शहर के चेयरमैन पद का प्रत्याशी बनाया गया था तब गुर्जर वर्ग ने भाजपा का काफी विरोध किया था जिसके बाद भजपा को अपना निर्णय बदलना पड़ा था।

सिंधिया की जगह पायलट

जैसा कि हमने बताया पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर मतदाता कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, परंतु वर्तमान में कांग्रेस के पास यूपी में कोई बड़ा और प्रभावी गुर्जर चेहरा नहीं है, जिसके चलते प्रियंका गांधी सचिन पायलट को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय करना चाहती हैं। पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से सक्रिय थे, परंतु वो अब भाजपा के साथ हैं। अब प्रियंका सिंधिया की जगह पायलट को देना चाहती हैं। सचिन पायलट न केवल एक मजबूत गुर्जर चेहरा हैं, बल्कि जमीनी स्तर पर उनका जुड़ाव भी जो उन्हें उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए अहम बनाता है।

कांग्रेस को मिली जीत में सचिन की भूमिका

ये सचिन पायलट ही थे जिन्होंने राजस्थान में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। राजस्थान में सचिन पायलट गुर्जर समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं और ये उनका ही प्रभाव था कि कांग्रेस पार्टी की जीत में करीब 70 फीसदी वोटबैंक गुर्जर समुदाय से था। इसके साथ ही ये तक कहा जाता है कि सचिन पायलट ने ही जमीनी स्तर पर कांग्रेस को मजबूत कर राजस्थान में पार्टी को जीत दिलाई थी। सचिन पायलट ने अपना ध्यान राष्ट्रीय राजनीति से हटा कर राज्य की चुनौतियों पर फोकस किया था और जमीनी स्तर पर काम कर पार्टी की जीत सुनश्चित की थी।

सचिन के लिए जब एकजुट हुए गुर्जर

वर्ष 2004 में दौसा सीट हो या 2009 में अजमेर सीट हो, सचिन पायलट दोनों बार जीते और सांसद बने। इसके बाद टोंक सीट से दो बार विधानसभा चुनाव भी पायलट जीत चुके हैं। इसी से आप समझ सकते हैं कि किस तरह से सचिन पायलट आम जनता से जुड़े हैं। जब अशोक गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री बने और पायलट को दरकिनार करने का प्रयास किया तो गुर्जर पायलट के समर्थन में एकजुट हो गये थे। ऐसे में प्रियंका गाँधी का सचिन पायलट को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रीय करना पार्टी के लिए चुनावी समीकरण बदल सकता है। पायलट कांग्रेस के पक्ष में गुर्जर मतदाताओं को एकजुट कर सकते हैं।

नोएडा, बिजनौर, गाजियाबाद, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय का प्रभाव है। हाल ही में भाजपा ने भी इन्हें साधने के लिए दादरी के मिहिर भोज पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था परंतु ये दांव भाजपा पर तब भारी पड़ गया जब राजपूत समुदाय नाराज हो गया। चाहे 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव हो या 2017 के विधानसभा चुनाव भाजपा को गुर्जरों का भरपूर समर्थन मिला था, परन्तु इस बार किसान आंदोलन के कारण भाजपा के सामने सबसे बड़ी दुविधा ये है कि वह नाराज़ चल रहे जाट, गुर्जर और राजपूत वोटरों के बीच ‘संतुलन’ कैसे बनाए। ये स्थिति कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, और प्रियंका गांधी वाड्रा इस तथ्य को समझती हैं कि सचिन पायलट का प्रदेश में सक्रीय होना पार्टी के लिए सकरात्मक साबित होगा।





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