Friday, February 4, 2022
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पृथ्‍वी की कक्षा शेयर करने वाला एक और ट्रोजन एस्‍टरॉयड मिला, 3500 साल तक निभाएगा साथ


पृथ्वी की कक्षा को शेयर करने वाले दूसरे ट्रोजन एस्‍टरॉयड (Trojan asteroid) के बारे में अटकलें खत्‍म हो गई हैं। रिसर्चर्स ने कन्‍फर्म किया है कि यह सच्‍चाई है। खगोलविदों ने साल 2020 में पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले एक अन्‍य ट्रोजन एस्‍टरॉयड की खोज की थी। अब वैज्ञानिकों ने कन्‍फर्म किया है कि ट्रोजन एस्‍टरॉयड कोई असाधारण मामला नहीं है। यह छोटी अंतरिक्ष चट्टानें हैं, जो एक ग्रह के साथ ऑर्बिट शेयर करते हुए चक्कर लगाती हैं। ऐसे कई एस्‍टरॉयड को सौर मंडल के अन्य ग्रहों की परिक्रमा करते हुए खोजा गया है। पृथ्वी के साथ सूर्य की परिक्रमा करने के मामले में अब तक एस्‍टरॉयड 2010 TK7 को इकलौता ट्रोजन एस्‍टरॉयड माना जाता था।

अब ‘2020 XL5′ नाम का ट्रोजन एस्‍टरॉयड भी इस ग्रुप में शामिल हो गया है। 2020 XL5 एस्‍टरॉयड की लंबाई लगभग 1.2 किलोमीटर है। यह 2010 TK7 की तुलना में लगभग तीन गुना ज्‍यादा लंबा है। वैज्ञानिकों को यकीन है कि यह ट्रोजन एस्‍टरॉयड कम से कम 3500 साल तक इसी कक्षा में रहेगा और पृथ्‍वी के साथ-साथ सूर्य का चक्‍कर लगाता रहेगा। 

2020 XL5 एस्‍टरॉयड को पहली बार दिसंबर 2020 में देखा गया था। तब खगोलविदों ने इसे हवाई में Pan-STARRS 1 टेलिस्‍कोप की मदद से देखा था। उसके बाद इस एस्‍टरॉयड को इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के माइनर प्लेनेट सेंटर डेटाबेस में जोड़ा गया।

स्‍टडी के प्रमुख लेखक टोनी सैन्टाना-रोस ने Space.com को बताया कि ट्रोजन एस्‍टरॉयड के रूप में 2020 XL5 की खोज ने यह कन्‍फर्म किया कि ‘2010 TK7′ एस्‍टरॉयड कोई अपवाद नहीं था। इस खोज ने खगोलविदों को और ज्‍यादा ट्रोजन एस्‍टरॉयड की खोज के लिए प्रेरित किया है। 

‘2020 XL5′ एस्‍टरॉयड को देखने के बाद खगोलशास्त्री टोनी डन ने NASA के JPL-हॉरिजॉन सॉफ्टवेयर का इस्‍तेमाल करके ऑब्‍जेक्‍ट के प्रक्षेपवक्र (trajectory) की गणना की। इससे पता चला कि ऑब्‍जेक्‍ट पृथ्वी-सूर्य के चौथे लैग्रेंज बिंदु या L4 की परिक्रमा करता है। जो हमारे ग्रह और सूर्य के चारों ओर एक गुरुत्वाकर्षण बैलेंस्‍ड एरिया है। खासबात यह है कि ट्रोजन एस्‍टरॉयड ‘2010 TK7′ भी इसी L4 पर है।

नेशनल साइंस फाउंडेशन के नेशनल ऑप्टिकल-इन्फ्रारेड एस्ट्रोनॉमी रिसर्च लेबोरेटरी (NOIRLab) के रिसर्चर और को-ऑथर सीजर ब्रिसेनो ने कहा कि ये ऑब्‍जर्वेशन बहुत चुनौतीपूर्ण थे। इसके लिए टेलि‍स्कोप को सही तरीके से ट्रैक करने की आवश्यकता होती है। इसके बाद कई देशों के उपकरणों का इस्‍तेमाल करते हुए वैज्ञानिकों ने इस ट्रोजन एस्‍टरॉयड का पता लगाया। 
 

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