Monday, December 13, 2021
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पार्किंसन के इलाज की मिली राह, खास मॉलिक्यूल से बन सकेगी इफैक्टिव दवा – स्टडी


Way Found For Treatment Of Parkinson’s : नर्वस सिस्टम (Nervous system) से जुड़ी बीमारी पार्किंसन (Parkinson) की रोकथाम और इलाज (Prevention and Treatment) की दिशा में साइंटिस्ट एक बड़ी उपलब्धि की ओर बढ़ रहे हैं. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ (University Of Bath) के साइंटिस्टों की एक टीम ने एक खास मॉलिक्यूल (Molecule) को रिफाइन (परिष्कृत) किया है, जिससे पार्किंसन की रोकथाम संभव है. रिसर्चर्स का दावा है कि इससे मेडिसिन बनाकर इस घातक बीमारी का इलाज हो सकेगा. इस स्टडी का निष्कर्ष जर्नल ऑफ मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Journal of Molecular Biology) में प्रकाशित किया गया है. यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के डिपार्टमेंट ऑफ बायोलॉजी एंड बाय केमिस्ट्री (Department of Biology & Biochemistry) के प्रोफेसर और इस स्टडी को लीड करने वाले के प्रोफेसर जोडी मेसन (Jody Mason) ने बताया, ‘वैसे तो अभी काफी सारा काम किया जाना बाकी है, लेकिन इस मॉलिक्यूल से दवा विकसित करने संभावना है. इन दिनों जो दवा उपलब्ध है, उनसे सिर्फ पार्किंसन के लक्षणों का इलाज हो सकता है. लेकिन अब हमें ऐसी दवा विकसित करने की उम्मीद है, जिससे कि लोग इस बीमारी के लक्षण से पहले वाली स्थिति वाला स्वास्थ्य पा सकते हैं.’

आपको बता दें कि पार्किंसन डिजीज (Parkinson’s disease) में शरीर के अंगों में कंपन महसूस होती है. इससे चलने फिरने और बैलेंस बनाने में कठिनाई होती है. दुनिया में करीब एक करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. एक अनुमान मुताबिक, भारत में इनकी संख्या लगभग 5.6 लाख है. वैसे तो ये बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति हो सकती है, लेकिन 60 साल से ज्यादा आयु के लोगों में ये सबसे ज्यादा देखने को मिलती है.

कैसे होती है ये बीमारी
दरअसल पार्किंसन डिजीज (Parkinson’s disease) में ह्यूमन सेल्स (human cells) में एक खास प्रोटीन मिसफोल्ड हो जाता है, यानी गलत तरीके से मुड़ जाता है. जिससे उसका कामकाज बिगड़ जाता है. ये प्रोटीन एल्फा-एस (αS) यानी अल्फा-सिन्यूक्लिन (Alpha-synuclein)  ह्यूमन ब्रेन में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. मिसफोल्डिंग (Misfolding) के बाद काफी बड़ी मात्रा में ये जमा हो जाता है. जिससे लेवी बॉडीज (Lewy Bodies) कहते हैं.

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इसमें पाया जाने वाला अल्फा-सिन्यूक्लिन संग्रह डोपामाइन (dopamine) प्रोड्यूस करने वाले ब्रेन सेल्स के लिए टॉक्सिक (toxic) यानी विषैला होता है,  जिससे उनकी मौत हो जाती है. इसी कारण डोपामाइन के सिग्नल में कमी आ जाती है और पार्किंसन डिजीज के लक्षण प्रकट होने लगते हैं. क्योंकि ब्रेन से अन्य अंगों को भेजे जाने वाले सिग्नल में गड़बड़ी पैदा हो जाती है, इसलिए पीड़ित इसलिए पीड़ितों में कंपन की स्थिति उत्पन्न होती है.

कैसे हुई स्टडी
पहले के प्रयासों में अल्फा-सिन्यूक्लिन (αS)  प्रेरित न्यूरोडिजेनरेशन (Neurodegeneration) यानी तंत्रिका क्षरण को टारगेट कर उसे डिटॉक्सिफाई (detoxify) करने यानी विष रहित करने के क्रम में साइंटिस्टों ने पेप्टाइड (Peptide) का व्यापक विश्लेषण किया, ताकि अल्फा-सिन्यूक्लिन (αS) के ‘मिसफोल्डिंग (Misfolding)’ को रोका जा सके. बता दें कि पेप्टाइड अमीनो एसिड की छोटी श्रृंखला होती है, जो प्रोटीन की निर्माण इकाई होती है.

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इसके लिए 2 लाख 9 हजार 952 पेप्टाइड की स्क्रीनिंग की गई. लैब में इनमें से पेप्टाइड 4554 डब्लू को सबसे अधिक कारगर पाया गया, जो अल्फा-सिन्यूक्लिन (αS) को टॉक्सिक के रूप में संग्रहीत होने से रोकता है.

स्टडी में क्या निकला
इस नई स्टडी में 4554 डब्लू को और प्रभावी बनाने के लिए उसे परिष्कृत (रिफाइंड) किया. इस मॉलीक्यूल के नए रूप 4654 (एन6ए) में सुधार के लिए उसके मूल अमीनो एसिड के सीक्वेंस में दो सुधार किए गए, जिसने उसे और प्रभावी बना दिया. इससे अल्फा-सिन्यूक्लिन (αS) की ‘मिसफोल्डिंग (Misfolding) संग्रहण और विषाक्ता (Storage and poisoning) में कमी आई .रिसर्चर्स का कहना है कि यदि यह परिष्कृत मॉलीक्यूल (Refined Molecules) प्रयोगों के दौरान सफल साबित होता रहा, तब भी बीमारी के इलाज में अभी कई सालों का समय लग सकता है.

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