Tuesday, March 8, 2022
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नर नारायन सरिस सुभ्राता… राम नाम के दो वर्ण नर और नारायण के समान सुंदर भाई


Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas: तुलसी दास जी राम नाम की महिमा को बढ़ाते हुए दोनों वर्णों का संबंध मन और श्रवण से जोड़ते हैं. राम नाम का जाप करने वाले को अनन्त फल की प्राप्ति होती है. जीवन में जो भी कष्ट होते हैं वह सब दूर हो जाते हैं. तुलसी बाबा पहले बता चुके हैं कि महादेव स्वयं भी राम नाम का ही जप करते हैं. आगे तुलसी वचनों को समझते हुए बढ़ते हैं – 

आखर मधुर मनोहर दोऊ । 
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ⁠।⁠। 
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू । 
लोक लाहु परलोक निबाहू ⁠।⁠। 

दोनों अक्षर र और म मधुर और मनोहर है, जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं, भक्तों के जीवन हैं तथा स्मरण करने में सबके लिए सुलभ और सुख देने वाले हैं और जो इस लोक में लाभ और परलोक में निर्वाह करते हैं.

कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके । 
राम लखन सम प्रिय तुलसी के ⁠।⁠। 
बरनत बरन प्रीति बिलगाती । 
ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ⁠। 

ये कहने, सुनने और स्मरण करने में बहुत ही अच्छे सुंदर और मधुर हैं. तुलसीदास को तो श्री राम-लक्ष्मण के समान प्यारे हैं। इनका ‘र’ और ‘म का अलग-अलग वर्णन न करने में प्रीति बिलगाती है अर्थात बीज मन्त्र की दृष्टि से इनके उच्चारण, अर्थ और फल में भिन्नता दीख पड़ती है परन्तु हैं ये जीव और ब्रह्म के समान स्वभाव से ही साथ रहने वाले सदा एकरूप और एकरस .

नर नारायन सरिस सुभ्राता । 
जग पालक बिसेषि जन त्राता ⁠।⁠। 
भगति सुतिय कल करन बिभूषन । 
जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन ⁠।⁠। 

ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुन्दर भाई हैं, ये जगत्‌ का पालन और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाले हैं। ये भक्तिरूपिणी सुन्दर स्त्री के कानों के सुन्दर आभूषण हैं और जगत के हित के लिये निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं. 

स्वाद तोष सम सुगति सुधा के । 
कमठ सेष सम धर बसुधा के ⁠।⁠। 
जन मन मंजु कंज मधुकर से । 
जीह जसोमति हरि हलधर से ⁠।⁠। 

ये सुन्दर गति मोक्ष रूपी अमृत का स्वाद और तृप्ति के समान हैं, कच्छप और शेष जी के समान पृथ्वी के धारण करने वाले हैं, भक्तों के मन रूपी सुन्दर कमल में विहार करने वाले भौंरे के समान हैं और जीभ रूपी यशोदा जी के लिये श्रीकृष्ण और बलरामजी के समान आनन्द देने वाले हैं.

दो०—
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ ⁠। 
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ⁠।⁠।⁠ 

तुलसीदासजी कहते हैं—श्रीरघुनाथजीके नामके दोनों अक्षर बड़ी शोभा देते हैं, जिनमेंसे एक रकार छत्र रूप रेफ से और दूसरा मकार मुकुटमणि अनुस्वार रूप से सब अक्षरों के ऊपर हैं.

रघुपति चरन उपासक जेते, खग मृग सुर नर असुर समेते, श्री रामचंद्र जी के चरणों के सभी उपासक वंदनीय

महामंत्र जोइ जपत महेसू, महादेव स्वयं जपते हैं राम नाम, राम नाम जपने से होता है कल्याण



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