Astrological Remedy : पीपल, आंवला, तुलसी, बरगद, अशोक आदि वृक्षों की उपासना बड़ी आस्था और विश्वास के साथ की जाती है. वनस्पतियों का चयन और उन्हें बोने का समय ज्योतिषशास्त्र के मुहूर्त के अनुसार निर्धारित होता है, इसलिए पहले आयुर्वेदाचार्यों के लिए ज्यातिष का ज्ञान जरूरी होता था.
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गंधर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।
गीता के दसवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं- सब वृक्षों में मैं पीपल हूं, देवार्षियों में नारद हूं, गंधर्वों में चित्रथ हूं और सिद्धों में कपिल हूं. पीपल का वृक्ष दिन और रात हर समय दैविक शुद्धता और प्राणवायु प्रदान करने वाला एकमात्र वृक्ष है. इसमें देवताओं का वास बताया गया है. पीपल के वृक्ष के लिए कहा गया है.–
मूले ब्रह्मा तना विष्णु शाखा शाखा महेश्वराय ।
पुरुषत्व का प्रतीक है बरगद. बरगद के पत्ते का दूध पुरुषत्व की दिव्य औषधि है. पतिव्रता स्त्रियां अपने सुहाग अर्थात पति की दीर्घायु के लिए बरगद के वृक्ष से प्रार्थना करती है और उस वृक्ष के तने के चारों ओर सूत लपेटती है.
अशोक के वृक्ष की पूजा करने का विधान है. अशोक के वृक्ष में स्त्रियों के समस्त रोगों की औषधि पाई जाती है. रामायण के सुंदरकांड में अशोक के वृक्ष के विषय में वर्णित है कि-
सनुहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका।
मां जानकी श्रीराम की प्रतिक्षा में अपनी पीड़ा हरने के लिए अशोक के वृक्ष से प्रार्थना कर रही हैं कि आप मेरा शोक हर लें और अपने अशोक नाम को सत्य करें.
यह सर्वविदित है कि तुलसी में भी अनेक गुण है. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम से किया जाता है. और तुलसी के पौधे को एक वधू की भांति सयाजा जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की अक्षय नवमी को आंवला के वृक्ष का पूजन, अर्चन, परिक्रमा एवं उसके नीचे भोजन किया जाता है. इसी प्रकार विजय दशमी को शमी के वृक्ष का पूजन किया जाता है. अपने पापों का प्रायश्चित करने हेतु हवन में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां अलग-अलग उपाय के लिए प्रयोग की जाती है.
अर्कपलाश खदिरोऽअपामार्ग पिप्पलः ।
औदुम्बरः शमी दुर्वा कुशाश्चसमिधः क्रमात ।।
हवन में ग्रहों के अनुसार ही लकड़ी का प्रयोग करने का विधान है । सूर्य की उपासना के लिए आक की लकड़ी, चंद्र के लिए पलाश, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए अपामार्ग, गुरू के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहू के लिए दूर्वा और केतु के लिए कुशा का प्रयोग किया जाता है.
कैसे जाने अपना नक्षत्र- कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में होता है वह चन्द्र राशि कही जाती है. और गहराई पर जाने पर इसी राशि में तीन नक्षत्रों में एक नक्षत्र में होगा और चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो वह व्यक्ति का जन्म चन्द्र नक्षत्र होगा उसी के अनुसार वृक्षारोपण किया जाएंगा. वनस्पतियों की सेवा से ग्रहों को शांत किया जा सकता है.
किस नक्षत्र के लोग कौन से वृक्ष की सेवा करें- प्रत्येक नक्षत्र की भी अपनी-अपनी वनस्पति होती है. जातक को अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार पेड़ को अपने घर में लगा कर उसकी देख-रेख एवं पूजन करना चाहिए. 27 नक्षत्रों की वनस्पियां इस प्रकार हैं-
नक्षत्र- वृक्ष
अश्वनि-कुचिला, भरणी-आंवला, कृतिका-गूलर, रोहिणी-जामुन, मृगशिरा-खैर, आर्द्रा-अगर, पुनर्वसु-बांस, पुष्य-पीपल, आश्लेषा-चमेली, मघा-वड, पूर्वा फाल्गुनी-ढ़ाक, उत्तरा फाल्गुनी-पिलखन, हस्त-जाई, चित्रा-बेल, स्वाती-अर्जुन, विशाखा -बबूल, अनुराधा-नागकेशर, ज्येष्ठा-शंभल, मूल-राल, पूर्वाषाढ़ा-बेंत, उत्तराषाढ़ा-पनस, श्रवण-आक, धनिष्ठा-जाठी, शतभिषा-कदंब, पूर्वा भाद्रपद-आक, उत्तराभाद्रपद-नीम, रेवती-महुआ.
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