Sunday, April 3, 2022
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ध्वनि प्रदूषण की वजह से 6 करोड़ भारतीयों के सुनने की क्षमता पर असर – रिपोर्ट


Noise Pollution and Hearing Problem: लगातार बढ़ता ध्वनि प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. लगातार बढ़ता रोड ट्रैफिक, एयर ट्रैफिक, रेलवे, मशीनरी इंडस्ट्री और बहुत तेज आवाज में म्यूजिक सुनना, ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारक माने जाते हैं. अब संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है कि भारत में ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) की वजह से कम सुनने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत 6.3 करोड़ की आबादी ऐसी है, जो सुनाई नहीं देने की समस्या से पीड़ित है. इतना ही नहीं यूनाइटेड नेशंस एनवाइयरमेंट प्रोगम (UNEP) की ओर से जारी कई गई वार्षिक ‘फ्रंटियर रिपोर्ट 2022 (Frontiers 2022: Noise, Blazes and Mismatches)’ में भारत के मुरादाबाद शहर को विश्व का दूसरे नंबर का सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषित (Noise Polluted) शहर घोषित किया गया.

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भारतीय युवा तेजी से खो रहे हैं सुनने की क्षमता
दैनिक हिंदुस्तान अखबार में छपी न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि ध्वनि प्रदूषण की वजह से शारीरिक और मानसिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. खासकर इन एक्टिविटीज से भारत के युवा अपनी श्रवण क्षमता यानी सुनने की क्षमता (Hearing Ability) तेजी से खोते जा रहे हैं. यही हाल रहा, तो साल 2030 तक भारत में कम सुनने वालों की संख्या दोगुनी से ज्यादा यानी 13 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी. इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारत में 10 में से दो लोग ही इस समस्या का इलाज करवाते हैं और श्रवण यंत्र (Hearing Aids) पहनते हैं.

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दुनिया में 1 अरब लोगों की सुनने की क्षमता हो रही है बाधित
रिपोर्ट में कहा गया है कि लाउड म्यूजिक और मनोरंजन के अन्य साधनों के हाई नोइस (उच्च शोर) की चपेट में लंबे समय तक रहने के कारण दुनियाभर में 12 से 35 साल की उम्र के लगभग एक अरब लोगों की सुनने की क्षमता के लिए जोखिम पैदा हो गया है. दुनियाभर में लगभग डेढ़ अरब लोग कम श्रवण क्षमता यानी कम सुनाई देने की अवस्था के साथ जीवन जीते हैं. ताजा अनुमानों को अनुसार, साल 2030 तक ये संख्या दो अरब से ज्यादा तक पहुंच सकती है.

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