Saturday, March 19, 2022
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तालिबान के साथ पाकिस्तान के प्रभुत्व में गिरावट

डिजिटल डेस्क, काबुल। अफगानिस्तान पर अगस्त 2021 के मध्य में तालिबान के कब्जे के बाद से पाकिस्तान का प्रभुत्व कम होता जा रहा है और नई अड़चनें सामने आ रही है। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा को सुरक्षित करने, शरणार्थियों के प्रवेश और अफगानिस्तान में स्थित पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने के लिए पाकिस्तान के प्रयास पहले से ही विवादों का विषय हैं। तालिबान का अपने पाकिस्तानी समकक्ष तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ संबंध तोड़ने से इंकार करना इमरान खान सरकार के लिए और भी बड़ी चिंता का विषय बन गया है।

तालिबान ने पाकिस्तान को सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को कम करने और पाकिस्तानी तालिबान के साथ बातचीत के समझौते पर पहुंचने संबंधी दबाव डालने के लिए मजबूर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के पास इस समय चुनने के लिए मुश्किल विकल्प हैं। वह अपनी तालिबानी मित्र सरकार से दूरी बनाने के लिए तैयार नहीं है जिसे वह अपने पश्चिमी पड़ोसी पर प्रभाव डालने के लिए एक विकल्प के तौर देखता है। पाकिस्तान तालिबान के बदलते जा रहे रवैये से भी काफी हद तक दुखी है क्योंकि एक देश की सत्ता पर काबिज इस संगठन को अपने आपको विश्व में थोड़ी उदार छवि के साथ पेश करना है और ऐसे करना पश्चिमी प्रतिबंधों को कम करने तथा राजनयिक अलगाव को समाप्त करने के लिए आवश्यक है।

तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद से उसके साथ पाकिस्तान के दबदबे में कमी आई है और इससे चीजें और भी जटिल हो गई हैं क्योकि तालिबान अब अपनी छवि को सुधारने के लिए छटपटा रहा है। तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान के प्रति नीतियों को आकार देने में पाकिस्तान को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि पाकिस्तान अपने अफगान सहयोगी का समर्थन जारी रखे हुए है लेकिन तालिबान के सत्ता पर काबिज होने और इसके बाद इस्लामिक अमीरात की सरकार का राजनयिक और आर्थिक तौर पर विश्व से अलगाव की वजह से अफगानिस्तान की नई सरकार इमरान सरकार के लिए एक संपत्ति के बजाए बोझ अधिक बन सकती है।

बढ़ती अस्थिरता और आर्थिक तंगी के कारण गरीब अफगान पाकिस्तान में शरण लेने के लिए मजबूर हो सकते हैं। तालिबान के साथ पाकिस्तान का गठबंधन अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को भी खराब कर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अफगान क्षेत्र से सक्रिय पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने में तालिबान की विफलता पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। इस बार पाकिस्तान की हिचकिचाहट मुख्य रूप से इस चिंता से प्रेरित है कि अफगानिस्तान के अन्य पड़ोसियों सहित दुनिया भर में किसी भी अन्य सरकार ने अभी तक उसे मान्यता देने का कदम नहीं उठाया है।

पाकिस्तान द्वारा एकतरफा कार्रवाई से शक्तिशाली पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव आने की संभावना है। पाकिस्तान भी यह महसूस करता है कि तालिबान के राजनयिक और आर्थिक अलगाव को कम करने के लिए मान्यता अपने आप में बहुत कम होगी। हालांकि, पाकिस्तानी सरकार इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि अगर पश्चिमी दबाव से राहत पानी है तो तालिबान को प्रशासन और सुरक्षा दोनों के संबंध में अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को दूर करना होगा।

पाकिस्तान तालिबान को कम से कम समावेशी सरकार का नाटक करने और बुनियादी अधिकारों के लिए कम से कम सांकेतिक सम्मान प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। तालिबान ने अभी तक उसकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबानी सरकार को अफगानिस्तान स्थित जिहादी संगठनों से संबंध तोड़ने के लिए पाकिस्तान राजी करने में विफल रहा है।

ईरान, चीन और रूस जैसे देशों ने पहले तालिबान सरकार के साथ घनिष्ठ जुड़ाव का विकल्प चुना था लेकिन तालिबान की ओर से इस तरह की निष्क्रियता के बारे में चिंतित इन देशों के इसे जल्द ही आधिकारिक तौर पर मान्यता देने की संभावना नहीं है। जब तक तालिबान समझौता करने की कोई इच्छा नहीं दिखाता तब तक यह संभावना और भी कम है कि अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी तालिबान सरकार को मान्यता देंगे और सभी प्रतिबंधों को तब तक हटा देंगे ।

तालिबान के साथ अपनी निकटता को देखते हुए,पााकिस्तान खुद पश्चिमी दबाव का सामना कर सकता था, जिसका उद्देश्य उसे अपने अफगान सहयोगियों को अंतरराष्ट्रीय मांगों के प्रति अधिक सकारात्मक रूख के लिए समझाने को मजबूर करना था। आईसीजी ने कहा कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में अमेरिका के प्रभुत्व को देखते हुए पाकिस्तान के अमेरिका के साथ संबंध विशेष रूप से कठिन हो सकते हैं। इसी पर पाकिस्तान अपनी कमजोर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए निर्भर है।

पाकिस्तान अफगानिस्तान के आर्थिक और कूटनीतिक संकटों के सीमा पार प्रभाव के बारे में भी चिंतित है। अफगानिस्तान का मौजूदा आर्थिक पतन पाकिस्तान को व्यापार संबंधों को पुनर्जीवित करने के अवसरों से वंचित कर रहा है जो तत्कालीन अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के साथ मनमुटाव के चलते बुरी तरह प्रभावित हुए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती असुरक्षा और आर्थिक कठिनाई से पाकिस्तान में शरण और आजीविका चाहने वाले गरीब अफगानों की संख्या संभवत: हजारों में तब्दील हो सकती है।

(आईएएनएस)



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