शाकंभरी उत्सव को शाकंभरी नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है. शांकभरी उत्सव का आरंभ पौष मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होता है और इसकी समाप्ति पौष
पूर्णिमा पर होती है. शाकंभरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर पौष पूर्णिमा पर समाप्त होने वाला पर्व है और शाक्त परंपरा में इसका विशेष महत्व रहा है. पौष शुक्ल अष्टमी को बनदष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. शाकंभरी नवरात्रि को छोड़कर अधिकांश नवरात्रि शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होती है लेकिन शाकंभरी उत्सव का आरंभ अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा पर समाप्त होता है. शाकंभरी नवरात्रि कुल आठ दिनों तक चलती है, तिथि क्षय और तिथि वृद्धि की स्थिति में में कई बार शाकंभरी नवरात्रि क्रमशः सात और नौ दिनों तक चल सकती है.
माता शाकम्भरी, देवी दुर्गा का ही अवतार हैं. मां दुर्गा के इस अवतार का विस्तृत वर्णन देवी पुराण में मिलता है. माना जाता है देवी शाकंभरी शाक सब्जियों और वनस्पतियों की देवी हैं. माता के अनेक नाम हैं, माता शाकंभरी को देवी वनशंकरी और शताक्षी भी कहा जाता है. कई जगहों पर माता शाकम्भरी को हरियाली का प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि माता शाकम्भरी अत्यंत दयालु और विनम्र हैं. बता दें कि पूर्णिमा का दिन माता शाकम्भरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है.
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