Maa kali puja vidhi
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भगवान शिव के अंश होने के कारण मां काली को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है. हिंदू धर्म की प्रमुख देवी मां काली भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों का संहार करने के लिए हुई थी. काली की व्युत्पत्ति का समय वह माना जाता है जो सबको ग्रास कर लेता है. कहा जाता है कि पापियों और दुष्टों का नाश करने के लिए ही मां दुर्गा ने काली के रूप में अवतार लिया था.
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दीपावली के दिन क्यों करते हैं काली पूजा
पौराणिक कथाओं की माने तो राक्षसों और दुष्टों का संहार करने के बाद भी महाकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ. जिसके बाद काली के रौद्र रूप को शांत करने के लिए स्वयं भगवान शिव उनके चरणों में लेट गए. शिव भगवान के शरीर के स्पर्श मात्र से ही मां काली का क्रोध समाप्त हो गया. इसी की याद में मां काली के शांत रूप लक्ष्मी पूजा की शुरुआत हुई. हालांकि इसी दिन भारत के कुछ राज्यों में उनके रौद्र रूप काली की पूजा का भी विधान है.
काली पूजा का महत्व
कार्तिक अमावस्या के दिन रात्रि में होने वाली काली पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन मां काली 64,000 योगिनियों के साथ प्रकट हुई थी, अनेकों राक्षस और दुष्टों का संहार किया था. रात्रि के समय में मां काली की पूजा करने से जीवन से दुखों का अंत होता है. दुश्मन और शत्रु का नाश होता है. जीवन में सुख शांति का आगमन होता है. मान्यता तो यह भी है कि काली पूजन करने से जन्म कुंडली में बैठे राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं. वैसे तो रोजाना मां काली पूजन फलदाई होती है लेकिन दीपावली की रात को की गई पूजा से मां काली बेहद प्रसन्न होती है. मां काली की पूजा करने वाले भक्तों को मां सभी तरह से प्रसन्न और सुखी बना देती है.
काली पूजन का सही समय
सामान्यतः मां काली की पूजा प्रत्येक दिन होती है. लेकिन कार्तिक अमावस्या के दिन पूर्ण श्रद्धाभाव और मन से मां काली की पूजा अर्धरात्रि के समय करनी चाहिए. ऐसा करने से पूजा सफल होती है. मां काली की पूजन के समय लाल और काली वस्तु को धारण करना चाहिए. सही तरीके से पूजन करने से मां काली प्रसन्न होती है और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती है. सही समय और विधि-विधान से मां काली की पूजा की जाए तो जीवन से दुखों का नाश होता है.
मां काली पूजन विधि
कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनोयोग और विधि विधान से मां काली की पूजा सिद्ध होती है. सबसे पहले मां काली की तस्वीर या प्रतिमा की स्थापना करें. पूजा के समय लाल या काले वस्त्र धारण करें. मां काली की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं. लाल फूल मां को समर्पित करें. इसके बाद आसन पर बैठकर ‘ओम् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ मंत्र का 108 बार जाप करें. मां काली पूजन में देवी मां को खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जियों का भोग लगाएं. मां काली को प्रसन्न करने के लिए पूजा में 108 गुड़हल के फूल भी शामिल करें. 108 बेलपत्र की माला देवी काली को चढ़ाएं. ऐसा करने से मां प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करती है.