ravan dahan
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बिसरख गांव के जिक्र शिवपुराण में भी किया गया है। पुराणों के अनुसार, त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था। इस गांव में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी। ऋषि विश्रवा के घर ही रावण का जन्म हुआ था। रावण ने भगवान शिव की तपस्या भी इसी गांव में की थी और जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उसे बुद्धिमान और पराक्रमी होने का वरदान दिया था।
अबतक मिल चुके हैं 25 शिवलिंग
स्थानीय निवासियों के अनुसार, अब तक इस गांव में 25 शिवलिंग मिल चुके हैं। उन्होंने बताया कि एक शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका छोर अभी तक नहीं मिला है। साथ ही यह सभी शिवलिंग अष्टभुजा वाले हैं, जो कहीं पर भी नहीं हैं। बिसरख गांव में रावण का एक मंदिर में भी है, जिसकी हर रोज पूजा भी होती है। साथ ही अपने हर शुभ काम की शुरुआत रावण की पूजा आरधना के बाद ही शुरू की जाती है।
राक्षस जाति का किया था उद्धार
यहां रहनेवाले लोगों का तर्क है कि रावण ने राक्षस जाति का उद्धार करने के लिए माता सीता का अपहरण किया था। इसके अलावा रावण को कहीं बुरा नहीं बताया गया है। रावण ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से ही भगवान शिव से उनकी लंका ले ली।
हिंदी पंचांग के अनुसार,अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजय दशमी या दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। सनातन धर्म में इस दिन को अधर्म पर धर्म की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस बार दशहरा का पर्व 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। प्रत्येक वर्ष लोग रावण के पुतले का दहन करके बुराई के प्रतीक को जलाते हैं, लेकिन इसी के साथ रावण एक प्रकांड पंडित व महाज्ञानी विद्वान था। रावण के ज्ञान और विद्वता की प्रशंसा स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी। विजयदशमी की तिथि को अत्यंत शुभ माना जाता है और इस दिन शस्त्र पूजन का भी विधान है। इसके अलावा भी इस तिथि को लेकर कई मान्यताएं हैं, उन्हीं में से एक मान्यता है रावण दहन के बाद बचे अस्थि-अवशेषों को अपने घर ले जाना। यह अत्यंत ही शुभ माना जाता है। तो चलिए जानते हैं कि रावण की अस्थियों को घर ले जाना क्यों माना जाता है इतना शुभ और कैसे शुरु हुई ये परंपरा।
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