नवग्रहों में
शनिदेव को विशेष स्थान प्राप्त है। शनिदेव अपने राशि परिवर्तन, चाल और नक्षत्र परिवर्तन से सभी 12 राशियों पर प्रभाव डालते हैं। शनि को सौरमंडल में मौजूद सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति का ग्रह माना जाता है। शनि को एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में ढाई साल का समय लगता है। शनि जिन जातकों की जन्मकुंडली में शुभ स्थिति में होते हैं, उन्हें शनि की साढ़े साती फलदायक साबित होती है। जानिए कि
राशि पर चल रही शनि की साढ़े साती और कब मिलेगी मुक्ति-
शनि को कर्म फलदाता माना जाता है। शनिदेव जातक को उसके कर्म के हिसाब से फल देते हैं। शनि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली के 12वें, पहले, दूसरे और जन्म के चंद्र के ऊपर से होकर गुजरे तो शनि की साढ़े साती कहलाती है। शनि की साढ़े साती के तीन चरण होते हैं। पहला चरण बेहद कष्टकारी साबित होता है। पहले चारण में जातक को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दूसरे चरण में जातक को पारिवारिक जीवन से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। तीसरे चरण में शनि जातक को भूल सुधारने का मौका देते हैं।
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