Sunday, October 24, 2021
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जानिए इस दुर्गा अष्टमी का सही मुहूर्त, महत्व व इसे मनाए जाने का मुख्य कारण


Durga ashtami 2021
– फोटो : google

दुर्गाष्टमी नवरात्रि व दुर्गोत्सव का आठवां दिन है जो संपूर्ण भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन को देवी शक्ति के रुप में पूजा जाता है यही दुर्गा का एक अवतार है जो शाश्वत शक्ति हैं तथा  ‘बुराई’ पर ‘अच्छाई’ की जीत का प्रतीक बनती है. दुर्गाष्टमी नवरात्रि के आठवें दिन मनाई जाती है.  दुर्गा अष्टमी शुक्ल पक्ष में आती है और इस दिन कंजक पूजन का विशेष महत्व होता है. 

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दुर्गा अष्टमी शुभ मुहूर्त समय 

दुर्गा अष्टमी 13 अक्टूबर को बुधवार के दिन मनाई जाएगी. 

दुर्गा अष्टमी तिथि का समय: 12 अक्टूबर, रात 21:48 बजे से 13 अक्टूबर, रात 20:08 बजे तक 

दुर्गाष्टमी की कथा

दुर्गाष्टमी जिसे नवरात्रि त्योहार के अलावा मनाया जाता है उसे महाष्टमी के रूप में जाना जाता है. इस दिन मां दुर्गा के भक्त उपवास रखते हैं. इस दिन, देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर को मारने के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी हथियारों की मंत्र जाप के साथ पूजा की जाती है. इस अनुष्ठान को अस्त्र पूजा के नाम से जाना जाता है. इस दिन को वीरष्टमी भी कहा जाता है. मां की पूजा के दौरान, अष्टनायिका नामक दुर्गा के आठ अवतारों की भी पूजा की जाती है जिनमें ब्राह्मणी, इंद्राणी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, कामेश्वरी, माहेश्वरी और चामुंडा शामिल हैं. देवी के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके दुर्गा सतशती मंत्र का पाठ किया जाता है.

देवी के सहयोगी मानी जाने वाली 64 योगिनियों के साथ उनकी पूजा भी की जाती है. इस दिन माता के अन्य छोटे देवताओं और रक्षकों की भी पूजा की जाती है जिनमें भैरव भी शामिल हैं. इस दिन देवी गौरी के रूप में पूजा की जाती है. इस का अनुष्ठान करने के लिए, नौ छोटी कुंवारी कन्याओं की पूजा की जाती है, उनके पैर धोए जाते हैं और उन्हें हलवा, पूरी और खीर जैसे मिष्ठान अर्पित किए जाते हैं. कई मंदिरों में पूजा और ‘हवन’ किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं. दुर्गाष्टमी का समापन संधि पूजा के साथ होता है जो अगले दिन महानवमी की शुरूआत होती है. 

अष्टमी पूजन महत्व 

देवी दुर्गा का पूजन अष्टमी के दिन विशेष रुप से होता है. पूजन के लिए पूजा की सामग्री को एक थाल में एकत्रित कर लिया जाता है. पूजन सामग्री में फूल, फल, मिठाई, पंचामृत, मेवा, गुड, इलाइची, पान के पत्ते, कसेर, वस्त्र, अबीर, चन्दन, अक्षत, धुप-अगरबत्ती, घी का दीपक का उपयोग किया जाता है. पूजा के स्थान पर लाल रंग का आसन बिछाया जाता है. देवी की प्रतिमा को आसन पर स्थापित किया जाता है. देवी को लाल वस्त्र अर्पित किए जाते हैं तथा श्रृंगार सामग्री चढ़ाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए कठोर व्रत रखते हैं, उन पर देवी की कृपा हमेशा बनी रहती है और ऐसे लोग जीवन में हमेशा किसी भी तरह के भय एवं भ्रम से मुक्त रहते हैं.

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