बर्लिन में Pusteblume-Grundschule की हेडमिस्ट्रेस Ute Winterberg ने रॉयटर्स को एक इंटरव्यू में बताया, “क्लास के बच्चे उससे (रोबोट से) बात करते हैं, उसके साथ हंसते हैं और पढ़ाई के वक्त उससे चिट-चैट भी करते हैं।”
जोशुआ की मां Simone Martinangeli ने बताया कि उसका बेटा स्कूल में क्लासेज अटेंड नहीं कर सकता है क्योंकि फेफड़ों की गंभीर बीमारी के कारण उसकी गर्दन में एक ट्यूब पहनाई गई है।
रोबोट अवतार का यह प्रोजेक्ट बर्लिन के Marzahn-Hellersdorf डिस्ट्रिक्ट में एक लोकल काउंसिल के माध्यम से प्राइवेट पेड बेसिस पर चलाया जा रहा है। काउंसिल का कहना है कि जिले में इसने स्कूलों के लिए इस तरह के 4 रोबोट अवतार उपलब्ध करवाए हैं। इसके पीछे की प्रेरणा थी- कोरोना महामारी। काउंसिल का मानना है कि महामारी के बाद यह एजुकेशन का भविष्य है।
काउंसिल से जुड़े एक काउंसिलर ने कहा कि कई बार ऐसा होता है जब अलग-अलग कारणों से कोई बच्चा स्कूल नहीं जा पाता है। ऐसे में रोबोटिक अवतार उस बच्चे को स्कूल से जुड़ा होने में मदद करता है और उसे अहसास करवाता है कि वो भी स्कूल कम्यूनिटी का एक हिस्सा है। काउंसिल इस प्रोजेक्ट को राज्य स्तर पर राजनीतिक चर्चा के लिए भी आगे ला चुकी है।
जोशुआ की क्लास के एक बच्चे Noah Kuessner ने यह पूछे जाने पर कि क्या वह जोशुआ को स्कूल में दोबारा देखना चाहता है, कहा कि उसे यह पसंद है। उसने कहा कि चाहे जोशुआ का रोबोट अवतार हो या चाहे खुद जोशुआ हो, उसे यह पसंद है।
जोशुआ के एक और क्लासमेट Beritan Aslanglu ने कहा कि यह ज्यादा अच्छा रहेगा अगर जोशुआ खुद भी स्कूल आ सके।
मॉडर्न टेक्नोलॉजी एक तरफ जहां रोजमर्रा की जिन्दगी में नई नई सहूलियतें लेकर आ रही है वहीं, यह इन्सानों की सोशल लाइफ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। स्कूलों में रोबोट अवतार वास्तव में किसी गंभीर बीमारी या महामारी के समय पढ़ाई जारी रखने का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।