Vastu Shastra : किचन घर का एक पवित्र हिस्सा माना जाता है. यह तो आप जानते हैं, कि घर के आग्नेय कोण में ही किचन घर होना चाहिए. लेकिन इतने भर से घर वास्तु दोष से मुक्त है यह मान लेना खतरनाक हो सकता है. क्योंकि आजकल दो मंजिला मकान में या बहुमंजिला इमारतों और डुप्लेक्स फ्लैटों में अकसर देखा गया है कि किसी का शयनकक्ष या ऑफिस या तो किचन घर के ऊपर है या नीचे.
वास्तु की दृष्टि में घर में अग्नि स्थापन किचन मे होता है और यह सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जहां पर कुछ वर्षों से किचन पक रही हो, अग्नि जल रही हो. वहां पर निश्चित ही वातावरण आग्नेय मण्डल के प्रभाव में होगा. किचन में अग्नि स्थापन जितना पुराना होता है, उतना ही आग्नेय मण्डल अपना घनत्व बढ़ाता जाता है. इसका प्रभाव धीरे-धीरे ऊपर या नीचे की मंजिलों पर पड़ने लगता है और परिणाम यह होता है कि यदि किचन के नीचे या ऊपर अपना शयनकक्ष या ऑफिस बना लें तो यह निश्चित है कि उसे इस आग्नेय मंडल के कुप्रभाव झेलने ही पड़ेगें.
वास्तु शास्त्रों ने तत्व निर्धारण के आधार पर आग्नेय कोण को अग्नि स्थान कहा गया है. सभी अग्नि कर्म इसी स्थान पर होने चाहिए. वास्तु के अनुसार पूर्व दिशा के स्वामी को सूर्य तथा देवता को इंद्र कहा है. वैसे यह दिशा सृजनात्मक दिशा कही जाती है. दक्षिण दिशा का स्वामी मंगल है. इसके देवता यम हैं. इसे संहार या रूपांतरण की दिशा कहा जाता है. इन दोनों के बीच आग्नेय कोण है जिसमें प्राकृतिक अग्नि का वास है और अग्नि में निर्माण और विनाश दोनों की ही क्षमता होती है इसलिए इस स्थान पर जब दृश्य लौकिक अग्नि प्रज्ज्वलित होती है तो वह पारलौकिक अग्नि को भी प्रदीप्त कर देती है. इसके बाद वहां बहुत तेजी से आग्नेय मण्डल का निर्माण होने लगता है.
यदि कुछ वर्षों तक इस स्थान पर अग्नि कर्म होता रहे तो स्वाभाविक ही है कि यहां का आग्नेय मण्डल अत्यंत आग्नेय ऊर्जा से भर जाएगा. अतः जिन कार्यो के लिए अग्नि की मौलिक आवश्यकता है वह कार्य तो वहां सफलता पूर्वक संपन्न होंगे लेकिन अन्य कार्यो के लिए इस स्थान का प्रयोग हानिकारक हो सकता है.
अकसर देखा गया है कि अग्नि स्थापना के ऊपर सोना या ऑफिस इत्यादि बनाना अत्यंत कष्टकारी परिणाम देता है इसका परिणाम सिर्फ यह है कि अग्नि स्थापना के नीचे या ऊपर अत्यंत विकसित अग्नि ऊर्जा का क्षेत्र प्रभावी होता है और अधिक समय तक इस क्षेत्र में निवास करने पर उच्च रक्तचाप, नसों में कमजोरी, अकारण क्रोध, अनिद्रा, पारिवारिक क्लेश, मन-मलीनता, निर्णय क्षमता में कमी, पित्त की अधिकता, कानूनी विवाद, धन हानि व्यावसायिक विवाद आदि दोष देखे जा सकते हैं.
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