एक रिपोर्ट में FSB ने कहा है कि ट्रेडिशनल फाइनेंस जैसे- बड़े बैंक और हेज फंड भी इसमें शामिल होते जा रहे हैं। इस वजह से भी फाइनेंशल स्टेबिलिटी का खतरा तेजी से बढ़ सकता है। FSB ने क्रिप्टोकरेंसी को एक खतरे की तरह बताया है। पिछले साल मई में चीन ने क्रिप्टो मार्केट पर नकेल कसी, तो बिटकॉइन और Ether में तेज गिरावट देखी गई। यह ऐसे उदाहरण हैं, जो क्रिप्टो मार्केट को लेकर संशय पैदा करते हैं। बैंक ऑफ इंग्लैंड के डिप्टी गवर्नर जॉन कुनलिफ भी क्रिप्टोकरेंसी की खिलाफत कर चुके हैं।
क्रिप्टो की ब्रांच कहे जाने वाले डीसेंट्रलाइज्ड फाइनेंस (DeFi) भी FSB की चेतावनी को पुख्ता कर रहे हैं। इस वजह यह है कि ये बैंकों और एक्सचेंजों जैसे संस्थानों को दरकिनार करते हुए यूजर्स को क्रिप्टोकरेंसी में उधार देने, उधार लेने और सेविंग की इजाजत देते हैं। कोविड महामारी के दौर में DeFi की पॉपुलैरिटी बढ़ी है। इसके साथ ही यह घोटालों और अन्य अपराधों के लिए भी एक जरिया बन गया है। इस वजह से रेगुलेटर्स के सामने नई चुनौतियां आ रही हैं।
FSB की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेगुलेशन और मार्केट की निगरानी किए बिना DeFi और इससे जुड़े प्लेटफॉर्म फाइनेंशियल स्टेबिलिटी के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। फ्रांस की सिक्योरिटीज वॉचडॉग AMF के अध्यक्ष- रॉबर्ट ओपेले ने पिछले हफ्ते कहा था कि FSB के पास क्रिप्टोकरेंसीज को लेकर जल्द एक ग्लोबल फ्रेमवर्क हो सकता है। हालांकि FSB के बनाए रूल्स का पालन करने की बाध्यता इससे जुड़े देशों को नहीं है, लेकिन उन्हें ऐसे ही रूल्स बनाने को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर करनी होती है।
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