Astrology
lekhaka-Gajendra sharma
नई दिल्ली, 25 नवंबर। वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की दृष्टि का बड़ा महत्व होता है। कुंडली का विचार करते समय ग्रहों की दृष्टि और उसके अन्य ग्रहों से दृष्टि संबंध देखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। फल कथन इसी आधार किया जाता है किकौन सा ग्रह किस घर को देख रहा है और वहां स्थित किस ग्रह को प्रभावित कर रहा है।
ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों को एक-एक पूर्ण दृष्टि मिली हुई है। अर्थात् सभी ग्रह जिस घर या राशि में बैठे होते हैं वहां से सातवें घर को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। कुछ ग्रहों को अतिरिक्त दृष्टि भी मिली हुई है। सूर्य, चंद्र, बुध और शुक्र के पास सातवीं दृष्टि है। शनि के पास सातवीं के साथ तीसरी और दसवीं दृष्टि भी है। बृहस्पति के पास सातवीं के साथ पांचवीं और नौवीं दृष्टि भी है। मंगल के पास सातवीं के साथ चौथी और आठवीं दृष्टि भी है। इसी प्रकार राहू-केतु को सप्तम के साथ पंचम-नवम दृष्टि भी प्रदान की गई है।
जानिए कब और कैसे बनते हैं रवियोग और सर्वार्थसिद्धि योग?
ऐसे समझें
- सूर्य- 7
- चंद्र- 7
- मंगल- 4, 7, 8
- बुध- 7
- गुरु- 5, 7, 9
- शुक्र- 7
- शनि- 3, 7, 10
- राहू- 5, 7, 9
- केतु- 5, 7, 9
दृष्टि पाद विचार
सभी ग्रह जिस राशि पर रहते हैं वहां से तीसरे और दसवें स्थान को एक चरण दृष्टि से, नवें-पांचवें स्थान को दो चरण दृष्टि से, आठवें-चौथे स्थान को तीन चरण दृष्टि से और सातवें स्थान को पूर्ण चरण दृष्टि से देखते हैं।
क्या होता है असर
ग्रहों की दृष्टि का अर्थ है, उनकी दृष्टि जिस घर पर रहती है, उस घर से जुड़े फलों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए यदि मंगल आपकी कुंडली में खराब होकर लग्न स्थान में बैठा हुआ है तो वह चौथे सुख स्थान, सप्तम विवाह स्थान और अष्टम आयु स्थान को प्रभावित करेगा। जातक सुखों से वंचित रह सकता है, उसके विवाह में बाधाएं आएंगी विलंब होगा और अष्टम में होने से आयु में कमी जैसी स्थिति बन सकती है।
English summary
Planets in Astrology play vital role to operate human lives. here is ful details, please have a look.
Story first published: Thursday, November 25, 2021, 7:00 [IST]