मंत्रिमंडल विस्तार की आधिकारिक घोषणा होनी बाकी है। इसी के साथ माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान इस विस्तार के जरिये गहलोत और पायलट के बीच संतुलन बनाने के प्रयास करेगी।
राजस्थान में लंबे समय के इंतजार के बाद आखिरकार कैबिनेट विस्तार को लेकर तारीख तय हो गई है। 15 से 20 नवंबर के बीच की तारीख को मंत्रिमंडल के विस्तार के लिए तय किया गया है जिसमें सचिन पायलट के गुट के नेताओं को भी शामिल किया जा सकता है। कैबिनेट विस्तार के लिए प्रियंका गांधी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने मिलकर निर्णय लिया है। वहीं, सोनिया गांधी से भी इस संबंध में पहले ही चर्चा हो चुकी है। फिलहाल, इसकी आधिकारिक घोषणा होनी बाकी है। इसी के साथ माना जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान इस विस्तार के जरिये गहलोत और पायलट के बीच संतुलन बनाने के प्रयास करेगी।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कहा कि “राज्य में बहुप्रतीक्षित कैबिनेट फेरबदल का फैसला कांग्रेस आलाकमान पर छोड़ दिया गया है, जो तय करेगा कि यह कब होगा। इसकी पूरी जानकारी अजय माकन के पास है। हम चाहते हैं कि राज्य में सुशासन बना रहे।”
कितने पद खाली?
दरअसल, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा इस समय दिल्ली में हैं और 13 नवंबर तक उनके जयपुर लौटने की संभावना है। राज्यपाल ही मंत्रिमंडल विस्तार की तारीख पर आखिरी मुहर लगाएंगे। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच संतुलन बनाने के लिए पायलट गुट के 5-6 नेताओं को फिर से प्रदेश के मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। ये पायलट गुट के वही मंत्री होंगे जिन्हें पहले कैबिनेट से बाहर कर दिया गया था। इस बार कुल 30 मंत्री बनाये जा सकते हैं जिसमें पहले से ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत 21 मंत्री हैं, अर्थात 9 मंत्री पद अभी भी खाली हैं।
गौरतलब है कि गोविंद सिंह डोटासरा, रघु शर्मा और हरीश चौधरी को पहले ही अलग-अलग जिम्मेदारी दी जा चुकी है। रघु शर्मा इस समय गुजरात के प्रभारी हैं, और हरीश चौधरी पंजाब के प्रभारी हैं जबकि गोविंद सिंह डोटासरा इस समय प्रदेश अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री हैं। राजस्थान के मंत्रिमंडल विस्तार में एक व्यक्ति एक पद सिद्धांत को अपनाया जा सकता, ऐसे में संभावनाएं हैं कि डोटासरा, रघु शर्मा और हरीश चौधरी कैबिनेट से बाहर हो सकते हैं। इससे कुल 12 पद खाली हो जायेंगे हैं, यदि किसी को मंत्री पद से नहीं भी हटाया गया तो भी पायलट खेमें से कई नए चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है।
राजनीतिक संतुलन बनाने के प्रयास
अचानक से राजस्थान में राजनीतिक संतुलन बनाये जाने के पीछे पार्टी के प्रति सचिन पायलट की निष्ठ कारण हो सकती है। जिस तरह से पिछले एक साल में राजस्थान में राजनीतिक घमासान देखने को मिला है उससे सभी को उम्मीद थी कि पायलट पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। हालांकि, सचिन पायलट ने पार्टी हाईकमान पर भरोसा जताया और सही निर्णय की प्रतीक्षा की, जिससे पार्टी हाईकमान का भरोसा जीतने में वो कहीं न कहीं सफल हुए हैं।
बता दें कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी विवाद के कारण मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा था। पायलट अपने समर्थक नेताओं को फिर से वही पद वापस दिलाना चाहते थे, परंतु सरकार में कैबिनेट विस्तार को लेकर अशोक गहलोत का कहना था कि वो कैबिनेट विस्तार मंत्रियों के कामकाज और रिपोर्ट कार्ड के आधार पर ही करेंगे। इसका अर्थ स्पष्ट था कि वो केवल अपने समर्थकों को ही कैबिनेट में जगह देना चाहते थे। इसपर पार्टी हाईकमान ने भी चुप्पी साध रखी थी।
सचिन पायलट ने जीता भरोसा
सचिन पायलट की निष्ठा ने पहले ही पार्टी हाईकमान का भरोसा जीत लिया था, फिर उपचुनावों में जीत ने काम और आसान कर दिया है। बता दें कि राजस्थान के वल्लभनगर-धरियावद उपचुनाव में मिली जीत के बाद से कांग्रेस अब 2023 में राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान के लिए गहलोत और पायलट के बीच की खाई को पाटना आवश्यक हो गया था। ये भी एक तथ्य है कि राजनीतिक खाई को पाटना इतना आसान नहीं है, इसलिए अब कांग्रेस पार्टी दोनों के बीच संतुलन बनाने के प्रयास कर रही है। अब मंत्रिमंडल विस्तार के बाद गहलोत-पायलट के बीच की दूरी कितनी कम होती है, ये देखना दिलचस्प होगा।