वैसे तो पेरेंट्स के लिए बच्चों को पालना उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है, लेकिन अगर बच्चा किसी खास डिसऑर्डर या बीमारी से ग्रस्त हो, तो उनकी ये जिम्मदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. खासतौर से ऐसे बच्चों की देखभाल करने वाले पेरेंट्स के लिए ये काफी चुनौतीपूर्ण होता है, जिनके बच्चे ऑटिज्म (Autism) या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder) से ग्रस्त होते हैं. ऑटिज्म एक दिमागी बीमारी है, जो कि ज्यादातर बच्चों को होती है. इसका पता लगा पाना काफी मुश्किल होता है. बच्चा जब तक 2 या 3 साल का नहीं हो जाता, ऑटिज्म के लक्षणों (Autism Symptoms) का पता नहीं चल पाता है. बच्चों के व्यवहार, उनकी असामान्य प्रतिक्रिया और हाव-भाव से ही इस बीमारी का पता चल सकता है. अगर आपका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में खामोश रहता है या फिर किसी भी बात पर प्रतिक्रिया देर से व्यक्त करता है, तो यह लक्षण ऑटिज्म के हो सकते हैं.
वेबएमडी में छपी न्यूज रिपोर्ट में ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की देखभाल को लेकर पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स बताए गए हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार, इलाज और थेरेपी के अलावा भी पेरेंट्स रोजमर्रा की कुछ सामान्य चीजों पर ध्यान दे सकते हैं, जिससे भी बच्चे की सेहत में काफी फायदा पहुंच सकता है.
पॉजिटिविटी पर ध्यान दें
किसी अन्य की ही तरह, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाले बच्चे अक्सर पॉजिटिव बिहेवियर से अच्छा रिस्पॉन्स देते हैं. इसका मतलब है कि जब आप उनके अच्छे बिहेवियर के लिए उनकी तारीफ करते हैं, तो ये उन्हें (और आपको) अच्छा महसूस कराएगा. पेरेंट्स को चाहिए कि वो ऐसे बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार रखें, जिससे वे जान सकें कि आपको उनके बिहेवियर के बारे में क्या पसंद है. उन्हें अवॉर्ड देने के तरीके खोजें, फिर चाहे तो वो अतिरिक्त खेलने का समय देने जैसा हो या फिर स्टिकर या बेलून जैसे छोटे प्राइज हो.
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लगातार शेड्यूल को फॉलो करें
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder) वाले बच्चे रूटीन पसंद करते हैं, इसलिए सुनिश्चित करें कि उन्हें लगातार गाइडेंस मिलती रहे. उनसे इंट्रैक्शन टूटे नहीं, ताकि वे थेरेपी से जो सीखते हैं, उसकी प्रैक्टिस कर सकें. इसके साथ ही ये नए स्किल और बिहेवियर को सीखना आसान बना सकता है और उन्हें अलग-अलग सिचुएशन में अपनी नॉलेज को अप्लाई करने में मदद करता है. साथ ही उनके टीचर्स और थेरेपिस्ट से बात करें और इंट्रैक्शनंस के मेथड और तकनीकों का एक सेट ऑफ लाइन अप बनाने की कोशिश करें. उसे अच्छे से समझें, ताकि आप जो सीख रहे हैं, उसे घर ला सकें.
खेलने का शेड्यूल
इस बात ध्यान रखें कि ऐसी एक्टिविटी जो पूरी तरह से फन से भरी है, जिसमें किसी तरह की कोई एजुकेशन या थेरेपी नहीं है, उन्हें खोजें. ऐसी एक्टिविटी से आपके बच्चे को खुलने और आपसे जुड़ने में मदद मिल सकती है.
टाइम दें, सब्र रखें
आपके बच्चे के लिए सबसे अच्छा क्या है, ये पता लगाने के लिए आप कई अलग-अलग तकनीकों, इलाजों और दृष्टिकोणों को जानने की कोशिश करेंगे. ऐसे में आपको पॉजिटिव रहना है और कोशिश करनी है कि अगर बच्चा किसी विशेष तरीके से बेहतर रिस्पॉन्स नहीं दे रहा है, तो निराश बिल्कुल न हों.
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डेली एक्टिविटी के लिए बच्चे को अपने साथ ले जाएं
अगर आपके बच्चे का स्वभाव ऐसा है, जिसका पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, तो आपको ऐसा लग सकता है कि उसे कुछ स्थितियों में छुपाए रखना ही आसान है. लेकिन जब आप उन्हें अपने साथ ग्रोसरी शॉपिंग, पोस्ट ऑफिस या बैंक जाने जैसे रोजमर्रा के कामों में ले जाते हैं, तो इससे उन्हें अपने आसपास की दुनिया की आदत डालने में मदद मिल सकती है.
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