Astrology
lekhaka-Gajendra sharma
ज्योतिषियों,
विद्वानों
से
अक्सर
लोग
एक
प्रश्न
पूछते
हैं
किएक
ही
दिन
एक
ही
समय
पर
जन्में
सभी
लोगों
का
भाग्य
एक
जैसा
क्यों
नहीं
होता?
कोई
अमीर
के
घर
जन्म
लेता
है
तो
कोई
गरीब
के
घर।
कोई
निरोगी
पैदा
होता
है
तो
कोई
शरीर
में
भयंकर
रोग
लेकर।
कोई
दीर्घायु
होता
है
तो
कोई
अल्पायु।
इस
प्रश्न
का
उत्तर
दृष्टांतों
में
एक
राजा
की
कहानी
के
माध्यम
से
बड़ी
ही
खूबसूरती
से
प्रस्तुत
किया
गया
है।
शास्त्रों
का
कथन
है
किज्योतिष
शास्त्र
मूलत:
कर्तव्यशास्त्र
और
व्यवहारशास्त्र
है।
यह
कर्म
पर
आधारित
है।
प्रत्येक
जीव
का
प्रारब्ध
अर्थात्
पिछले
जन्म
का
कर्म
अलग-अलग
होता
है
और
उसी
का
प्रभाव
उसे
अगल
जन्म
में
भोगना
पड़ता
है।
इस
बात
की
सत्यता
जांचने
के
लिए
एक
राजा
ने
विद्वान
ज्योतिषियों
की
सभा
बुलाकर
प्रश्न
किया
कि-
मेरी
जन्मपत्रिका
के
अनुसार
मेरा
राजा
बनने
का
योग
है,
किंतु
जिस
घड़ी-मुहूर्त
में
मेरा
जन्म
हुआ,
उसी
समय
में
अनेक
जातकों
ने
जन्म
लिया
होगा,
जो
राजा
नहीं
बन
सके।
क्यों?
इसका
कारण
क्या
है?
राजा
के
इस
प्रश्न
का
किसी
के
पास
उत्तर
नहीं
था।
सभा
में
सन्नाटा
छा
गया।
तभी
सभा
के
बीच
से
एक
बुजुर्ग
उठ
खड़े
हुए
और
बोले-
महाराज,
आपके
प्रश्न
का
उत्तर
यहां
किसी
के
पास
नहीं
है
किंतु
मैं
बताता
हूं
किआपको
अपने
प्रश्न
का
उत्तर
कैसे
मिलेगा।
राजा
ध्यान
से
बुजुर्ग
की
बात
सुनने
लगे।
बुजुर्ग
बोले-
यहां
से
काफी
दूर
घने
जंगल
में
आप
अकेले
जाएं
तो
आपको
एक
महात्मा
मिलेंगे,
वे
आपके
प्रश्न
का
उत्तर
दे
सकते
हैं।
उत्सुकता
से
भरे
राजा
बुजुर्ग
के
बताए
अनुसार
अकेले
घने
जंगल
में
चले
गए।
घंटों
यात्रा
के
बाद
जंगल
में
उन्हें
एक
महात्मा
दिखाई
दिए,
जो
आग
के
ढेर
के
पास
बैठकर
अंगारे
खा
रहे
थे।
सहमे
हुए
राजा
महात्मा
के
पास
ज्यों
ही
पहुंचे,
महात्मा
ने
डांटते
हुए
कहा
कितुम्हारे
प्रश्न
का
उत्तर
देने
के
लिए
मेरे
पास
समय
नहीं
है,
मैं
अपनी
भूख
से
मजबूर
हूं।
यहां
से
आगे
पहाड़ियों
के
बीच
एक
और
महात्मा
हैं,
उनसे
तुम्हें
उत्तर
मिल
सकता
है।
राजा
की
जिज्ञासा
और
बढ़
गई।
राजा
पहाड़ियों
की
तरफ
चल
दिए।
चलते-चलते
काफी
अंधेरा
छा
गया।
मीलों
तक
पहाड़ियों
पर
चलने
के
बाद
राजा
को
महात्मा
दिखाई
दिए।
महात्मा
चिमटे
से
अपना
ही
मांस
नोच-नोचकर
खा
रहे
थे।
राजा
को
देखते
ही
महात्मा
ने
डांटते
हुए
कहा-
मैं
भूख
से
बेचैन
हूं।
तुम्हारे
प्रश्न
का
उत्तर
देने
का
समय
नहीं
है
मेरे
पास।
आगे
जाओ
पहाड़ियों
के
उस
पार
आदिवासियों
के
यहां
एक
बालक
जन्म
लेने
वाला
है
जो
पांच
मिनट
तक
ही
जीवित
रहेगा।
सूर्योदय
से
पूर्व
पहुंचो,
बालक
उत्तर
दे
सकता
है।
राजा
तेजी
से
गांव
की
तरफ
चल
दिए।
सूर्योदय
के
पूर्व
ही
राजा
आदिवासी
दंपती
के
यहां
पहुंच
गए
और
आदेश
दिया
किबालक
के
जन्म
लेते
ही
उसे
मेरे
सामने
नाल
सहित
पेश
किया
जाए।
कुछ
समय
प्रतीक्षा
के
बाद
बालक
का
जन्म
हुआ
और
उसे
राजा
के
सामने
लाया
गया।
राजा
को
देखते
ही
बालक
ने
हंसते
हुए
कहा-
राजन्
मेरे
पास
भी
समय
नहीं
है
किंतु
फिर
भी
अपना
उत्तर
सुनो।
तुम,
मैं
और
वो
दोनों
महात्मा
जिनसे
तुम
मिलकर
आए
हो,
हम
चारों
सात
जन्म
पहले
भाई
राजकुमार
थे।
शिकार
खेलते-खेलते
हम
जंगल
में
भटक
गए।
तीन
दिन
तक
भूखे-प्यासे
भटकने
के
बाद
हमें
अचानक
जंगल
में
आटे
की
एक
पोटली
मिली।
जैसे-तैसे
हमने
उस
आटे
से
चार
बाटी
सेंकी
और
अपनी-अपनी
बाटी
लेकर
खाने
बैठे
ही
थे
किभूख-प्यास
से
तड़पते
हुए
एक
महात्मा
वहां
आ
पहुंचे।
अंगार
खाने
वाले
भाई
से
उन्होंने
कहा
बेटा
दस
दिन
से
भूखा
हूं।
अपनी
बाटी
में
से
मुझे
भी
कुछ
दे
दो
जिससे
मेरा
जीवन
बच
जाए।
सुनते
ही
भइया
ने
गुस्से
में
कहा-
तुम्हें
दे
दूंगा
तो
मैं
क्या
आग
खाऊंगा?
चलो
भागो
यहां
से।
इसके
बाद
महात्मा
ने
मांस
खाने
वाले
भइया
से
बाटी
मांगी
तो
उन्होंने
भी
महात्मा
को
यह
कहते
हुए
डांटकर
भगा
दिया
कितुम्हें
अपनी
बाटी
दे
दूंगा
तो
मैं
क्या
अपना
मांस
नोचकर
खाऊंगा?
भूख
से
लाचार
महात्मा
मेरे
पास
आए।
बाटी
के
लिए
याचना
की,
किंतु
मैंने
भी
उन्हें
भगा
दिया
और
कहा
कितुम्हें
अपनी
बाटी
दे
दूंगा
तो
क्या
मैं
भूखा
मरूं?
अंतिम
आशा
लेकर
महात्मा
तुम्हारे
पास
पहुंचे।
तुमसे
भी
दया
की
गुहार
की।
तुमने
बड़े
ही
प्रसन्न
मन
से
अपनी
बाटी
में
से
महात्मा
को
आधी
बाटी
आदर
सहित
दे
दी।
बाटी
पाकर
महात्मा
जी
अत्यंत
प्रसन्न
हुए
और
जाते
हुए
बोले-
तुम्हारा
भविष्य
तुम्हारे
कर्म
और
व्यवहार
से
फले।
बालक
ने
कहा-
इस
घटना
के
आधार
पर
आज
हम
चारों
अपना-अपना
कर्म
भोग
रहे
हैं।
धरती
पर
एक
समय
में
अनेक
प्राणी
जन्म
लेते
हैं
किंतु
सभी
का
प्रारब्ध
अलग-अलग
होता
है
जिससे
उनका
भाग्य
बनता
है।
इतना
कहते-कहते
बालक
की
सांसें
थम
गई।
राजा
ने
अपने
राजभवन
की
ओर
प्रस्थान
किया
और
आश्वस्त
हो
गया
किज्योतिष
शास्त्र
मूलत:
कर्तव्यशास्त्र
और
व्यवहारशास्त्र
है।
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English summary
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Story first published: Monday, April 18, 2022, 8:00 [IST]