केतु को संतृप्ति और एकांत का ग्रह माना जाता है।राहु की तरह केतु ग्रह का भी कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। इस ग्रह को स्वर्भानु राक्षस का धड़ और अध्यात्मिकता लाने वाला ग्रह भी माना जाता है।
केतु को प्रभाव का ग्रह भी कहा जाता है, यह किसी भी जातक को स्वयं कोई भी स्वतंत्र परिणाम नहीं देता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यह माना जाता है कि केतु किसी भी जातक की कुंडली के जिस भाव में स्थित होता है, जातक को उस भाव के स्वामी के अनुरूप ही फल देता है। साथ ही, किसी जातक की जन्म कुंडली में केतु का प्रभाव अन्य सात ग्रहों यानी कि सूर्य, चंद्रमा, मंगल, शनि, शुक्र, बृहस्पति और बुध की युति और दृष्टि पर निर्भर करता है।
केतु अन्य ग्रहों की ही तरह अपनी दशा अवधि में जातकों को परिणाम देता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि केतु जिस भी भाव में स्थित होता है, जातकों को उस भाव के निम्न फल प्राप्त होते हैं। इस ग्रह को अलगाव का ग्रह भी माना जाता है क्योंकि इसके प्रभाव में जातक सांसारिक सुखों से मोह भंग होने लगता है। केतु कर्मप्रधान ग्रह भी माना गया है और यह अच्छे व बुरे, दोनों ही प्रकार के कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है।