Wednesday, November 10, 2021
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आखिर क्यों शिवपाल यादव सपा से गठबंधन करने के लिए बैचेन हैं?


ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव का ठंडा रवैया अब शिवपाल यादव को चुभने लगा है, वो किसी तरह से सपा को मनाना चाहते हैं, परंतु खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले ही गठबंधन को लेकर सियासी उठापटक तेज है। इस बार का अगामी चुनाव यादव परिवार के लिये खास माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस बार मुलायम सिंह यादव का परिवार फिर से पहले की तरह साथ आ सकता है। इन अटकलों के बीच प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Yadav) ने समाजवादी पार्टी से जल्द ही गठबंधन के लिए विचार करने को कहा है।

सपा पर गठबंधन का दबाव

शिवपाल यादव ने अब शर्त सामने रखते हुए कहा कि “मैंने अखिलेश यादव से कहा है कि अगर हमारे लोगों को सम्मानपूर्वक टिकट दें तब हम गठबंधन कर लेंगे। गठबंधन के मामले पर पहले हम समाजवादी पार्टी के साथ बात करेंगे फिर अन्य पार्टियों के साथ बात करेंगे।” शिवपाल सिंह यादव का ये बयान सपा से गठबंधन करने की उनकी हताशा को दिखाता है। भले ही शिवपाल यादव ने शर्त रखने की बात कही है, परंतु यही बात वो पिछले दो साल से दोहरा रहे हैं। खुद शिवपाल यादव ने कहा, “मैं पिछले दो साल से अखिलेश से कह रहा हूं कि गठबंधन कर लो और चाहे विलय कर लो। हमारा जो हक है उसे या तो नेता जी तय कर दें या जनता तय करे वो हम मान लेंगे। हम दो साल से अखिलेश से कह रहे हैं कि हमसे बात कर लो, आकर बैठकर बात कर लो, अभी तक बात नहीं की।”

शिवपाल यादव के बार-बार आग्रह करने के बावजूद अखिलेश यादव की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिल रही है। ऐसा लगता है कि अखिलेश का ठंडा रवैया अब शिवपाल यादव को चुभने लगा है, वो किसी तरह से सपा को मनाना चाहते हैं, परंतु खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे। अब सवाल उठते हैं कि ऐसा क्या हुआ कि शिवपाल यादव फिर से उसी पार्टी से जुड़ना चाहते हैं जिससे कभी अपमान मिलने के कारण अलग हुए थे?

जब बनाई थी शिवपाल ने नई पार्टी

बता दें कि वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले ही समाजवादी पार्टी में दरार की खबरें सामने आने लगीं थीं। समाजवादी पार्टी तब दो खेमों में बंट गई थी। एक खेमा समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का था, और दूसरा खेमा अखिलेश यादव का था। उस समय मुलायम सिंह यादव और उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव के समर्थक और कार्यकर्ता एक तरफ थे और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री अखिलेश और उनके समर्थक। आलम ये था कि सार्वजनिक तौर पर राम गोपाल, आजम खान, अखिलेश बनाम मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह और अमर सिंह की लड़ाई साफ दिखाई देने लगी थी। इस कलह के कारण विधानसभा चुनाव से पहले ही समाजवादी पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। हालांकि, इस लड़ाई में अखिलेश यादव की जीत हुई, जबकि मुलायम सिंह यादव और उनके छोटे भाई शिवपाल यादव की हार हुई। पार्टी की लड़ाई तो अखिलेश यादव जीत गए, लेकिन उत्तर प्रदेश की कुर्सी हार गये थे।

इसके बाद समाजवादी पार्टी में सम्मानजनक पद न मिलने से नाराज शिवपाल यादव ने वर्ष 2018 में सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया। तब शिवपाल यादव ने सपा को निशाने पर लेते हुए कहा था कि ‘वहां सिर्फ चापलूसों की चलती है। हमारी पार्टी चापलूसों और चुगलखोरों से दूर रहेगी। कोई भी कार्यकर्ता सीधे अपनी बात कह सकता है।’ शिवपाल यादव ने जब नई पार्टी का गठन किया था तब कहा जा रहा था कि वो सपा के अस्तित्व को खतरे में डाल देंगे।

शिवपाल की उम्मीदों पर फिरा पानी

दरअसल, ये दावें किया जा रहे थे कि शिवपाल द्वारा नई पार्टी के गठन से समाजवादी पार्टी का समर्थन आधार दो भागों विभाजित हो जायेगा और शिवपाल सिंह यादव की नई पार्टी समाजवादी पार्टी को पग-पग पर नुकसान पहुंचायेगी। ऐसा होने के पीछे एक और कारण था, वो ये कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के पुराने कद्दावर नेता रहे हैं और समाजवादी पार्टी में उनकी जबरदस्त पकड़ तो थी ही साथ ही जनाधार भी था, लेकिन उनके अलग होने के बाद भी समाजवादी पार्टी के जनाधार पर कोई खास प्रभाव नहीं देखने को मिला। शिवपाल यादव को लगा था कि सपा से नाराज या उपेक्षित नेता व कार्यकर्ता उनके साथ आयेंगे जिससे वो सपा को और कमजोर कर देंगे। इसके विपरीत भाजपा, बसपा और कांग्रेस से नाराज नेताओं ने सपा का दामन थामने लगे।

राजनीतिक प्रसांगिकता बचाने की कोशिश

लोकसभा चुनावों में शिवपाल यादव की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई और इन्हीं चुनावों के बाद से शिवपाल के मन में अखिलेश के लिए कड़वाहट कम होती दिखाई देने लगी। अखिलेश यादव ने भी इसी वर्ष जून में कहा था कि सपा शिवपाल की पार्टी को भी साथ लेकर चलेगी और वो मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इस बयान के बाद भी आधिकारिक तौर पर चाचा-भतीजे साथ नहीं आ पाये हैं, कारण शायद शिवपाल यादव की शर्तें हैं जिसे अखिलेश कोई भाव नहीं दे रहेष

आज हालात ये हैं कि शिवपाल यादव राजनीतिक प्रासंगिकता ही खो रहे हैं। अब न उनके पास मजबूत कार्यकर्ताओं का साथ है, और न ही जनाधार रह गया है। ऐसे में शिवपाल यादव बार-बार अखिलेश यादव को गठबंधन के लिए मना रहे हैं।

हालांकि, इस वर्ष यूपी पंचायत चुनावों में चाचा-भतीजे की जोड़ी ने कमाल अवश्य दिखाया था। इटावा में जिला पंचायत का चुनाव समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया ने मिलकर लड़ा, जिसके चलते बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद अखिलेश यादव ने अपने चाचा से हाथ नहीं मिलाया जिससे एक बार फिर से शिवपाल की कोशिशें नाकाम हो गईं। अब जब विधानसभा चुनाव पास आ रहे तो शिवपाल यादव फिर से सपा पर गठबंधन करने का दबाव डाल रहे हैं।





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