Wednesday, March 2, 2022
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अंडर 19 वाला खिलाड़ी कोहली या पंत क्यों नहीं बन पाता है?


2022 में एक बार फिर से भारतीय अंडर 19 टीम ने अपना जलवा बिखेरा और उम्मीद के मुताबिक चैंपियन बन गए. 2018 का फाइनल जीतने के बाद से लेकर 2022 का टूर्नामेंट ख़त्म होने तक टीम इंडिया ने अंडर 19 वर्ल्ड कप में सिर्फ एक मैच गंवाया है और वो भी 2020 के फाइनल में बांग्लादेश के ख़िलाफ़. हर बार की तरह इस बार युवा सितारों ने एक शानदार भविष्य की उम्मीद जगाई है, जैसा कि विराट कोहली ने 2008 और 2016 में रिशभ पंत ने की थी. लेकिन, अंडर 19 से इंडिया टीम के लिए खेलना का कामयाबी फीसदी वैसा ही जैसा कि भारत जैसे देश में ग्रेजुएट होने के बाद सरकारी नौकरी का मिलना!

आपको ऐसा जानकर और सुनकर शायद थोड़ी हैरानी हो, क्योंकि ज़्यादातर लोगों के जेहन में तो विराट कोहली की 2008 वाली छवि ही हमेशा के लिए कैद है, जहां पर वर्ल्ड कप जीताते है भारतीय क्रिकेट पर छा जातें हैं. लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू भला कहां कोई याद रखता है. उसी टूर्नामेंट के सबसे कामयाब भारतीय बल्लेबाज़ जिसने कोहली से भी ज़्यादा रन बटोरे वो भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेल पाया. यहां हम जिक्र उत्तर-प्रदेश के तन्मय श्रीवास्तव का कर रहें हैं. लेकिन तन्मय इकलौते ऐसे खिलाड़ी नहीं रहें हैं जिन्होंने अंडर 19 की उम्मीदों के बाद मायूसी ही झेलनी पड़ी.

पिछले एक दशक के आंकड़ों पर ग़ौर फरमाएं तो आपको पता चलेगा कि 2008 के बाद से लेकर अब तक अंडर 19 वर्ल्ड कप से आने वाले सितारे खिलाड़ियों में से सिर्फ के एल राहुल, जयदेव उनाडकत, कुलदीप यादव, पंत, वाशिंगटन सुंदर और पृथ्वी शॉ ही उन चुनिंदा खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल हैं जो भारत के लिए तीनों फॉर्मेट में खेल चुके हैं. कोहली के साथ रविंद्र जडेजा ही ऐसे विरले खिलाड़ी हैं जो अब एक दशक से ज़्यादा समय तक सीनियर टीम इंडिया के लिए मैन-विनर की भूमिका हर फॉर्मेट में निभाते आ रहें हैं.

पिछले एक दशक में करीब 100 खिलाड़ियों ने भारत के लिए अंडर 19 वर्ल्ड कप में शिरकत की है लेकिन इनमें से करीब सिर्फ 10 फीसदी ही टीम इंडिया के लिए टी-20 मैचों में खेल पाएं. लगभग 10 फीसदी खिलाड़ी वन-डे क्रिकेट खेले. लेकिन, टेस्ट क्रिकेट के मामले में ये फीसदी तो बहुत नीचे गिर जाती है. अगर आपके  पास अक्सर कोहली का उदाहरण है तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के ही उनमुक्त चांद का भी उदाहरण एकदम विपरीत है. 2012 में चांद भी कप्तान थे और कोहली की तरह ट्रॉफी भी जीती और बल्लेबाज़ के तौर पर उनसे ज़्यादा कामयाब थे. लेकिन, जहां कोहली ने बुलंदियां छुई वहीं चांद तो दिल्ली की रणजी टीम तक में खुद को स्थापित नहीं कर पाए. आलम ये रहा कि उन्हें पहले दिल्ली छोड़नी पड़ी और अब देश. चांद इन दिनों अमेरिकी क्रिकेट टीम का हिस्सा हैं.

अब आपके मन में ये सवाल गूंज रहा होगा कि आखिर क्या वजह है कि अंडर 19 का हर सितारा टीम इंडिया के लिए चमकने में नाकाम क्यों हो जाता है? सबसे बड़ी वजह है अंडर 19 और फर्स्ट क्लास क्रिकेट के स्तर में ही बहुत अंतर है. अंत्तराष्ट्रीय क्रिकेट से तो इसकी तुलना ही ना करें तो बेहतर. हां, ये ज़रुर है कि कोहली, केन विलियमसन और जो रूट जैसे कुछ असाधारण प्रतिभा वाले खिलाड़ी ऐसे होतें है जो कम उम्र में ही अंत्तराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए परिपक्व हो जाते हैं. जैसा कि सचिन तेंदुलकर बिना अंडर 19 क्रिकेट के भी हो गए थे.

दूसरी अहम बात ये भी है कि रणजी ट्रॉफी में दबाव, उत्रदायित्व और ज़िम्मेदारियों का स्तर अचानक ही बढ़ जाता है, जिसके लिए कई मौके पर अंडर 19 का खिलाड़ी बदलाव के लिए सहज महसूस नहीं करता है. भारत जैसे देश में जहां प्रतिभाओं की कमी कभी नहीं रहती है तो वो खिलाड़ी जो अंडर 19 टीम का हिस्सा नहीं हो पाते हैं, कुछ सालों में दूसरे टूर्नामेंट में खुद को साबित करते हुए फर्स्ट क्लास टीम का सफर तय कर लेते हैं. यहां पर इन खिलाड़ियों को ये सकारात्मक एहसास होता है कि कोई बात नहीं अगर वर्ल्ड कप नहीं खेले तो कोई बात नहीं, हम तो वर्ल्ड कप के सितारों से कम नहीं. लेकिन, यही बात कई बार नकारात्मक तौर पर अडंर 19 वर्ल्ड कप में खेले खिलाड़ियों पर असर डालती है. वो ये सोचते हैं कि उनको जो कम उम्र में एडवांटेज मिला था, उसका वो फायदा नहीं उठा पाए. यही वजह से कई खिलाड़ी भटक जातें है या फिर टूट जातें हैं.

इन सब बातों के अलावा एक बात और भी है जो किसी भी ज़िंदगी की क्रिकेट या खेल के साथ जुड़ी होती है. खिलाड़ी को किस ग़लत मौके पर चोट लग जाए या अनफिट हो जाए, उसका कोई पता ठिकाना नहीं और इसके चलते कई बार उन्हें करियर के निर्णायक मौकों पर शानदार अवसर से चूकना पड़ता है. ऐसे कई किस्से आपको भारतीय क्रिकेट में मिल जाएंगे.

मुंबई के स्पिनर इकबाल अब्दुल्ला और पंजाब के सिद्दार्थ कौल 2008 में जडेजा ही तरह सबसे ज़्यादा विकेट साझा तौर पर झटकने वाले गेंदबाज़ों में थे, लेकिन उनका क्या हुआ आपको पता ही है. 2004 वर्ल्ड कप के सबसे कामयाब गेंदबाज़ों में शुमार अभिषेक शर्मा और प्रवीण गुप्ता भी यूं ही गुमनामी का हिस्सा हो गए. रवणीत रिक्की और रविकांत सिंह का भी वही हाल हुआ जो 2018 में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले अनुकूल रॉय का हुआ है. मतलब ये कि आपको इथने खिलाड़ियों के नाम मिलेंगे, जिन्होंने अंडर 19 वर्ल्ड कप में शानदार शुरुआत के बाद अपनी राह खो दी.

बहरहाल, आप अगर युवा खिलाड़ी है तो आपको मायूस होने की ज़रुर नहीं है. अगर आपको अंडर 19 की कामायाब के बाद नाकामी और संघर्ष को झलने के बाद आखिर हर हालत में भारत के लिए खेलने के सपने को पूरा करने की ज़िद है तो आपको दिल्ली के ही एख और खिलाड़ी शिखर धवन से प्रेरणा लेनी चाहिए. 2004 के सबसे कामयाब बल्लेबाज़ धवन को टीम इंडिया में खुद को स्थापित करने में एक दशक लग गए लेकिन जब वो आए तो ऐसे खेले को अब वन-डे क्रिकेट के महान खिलाड़ियों में खुद को शुमार कर चुके हैं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

ब्लॉगर के बारे में

विमल कुमार

न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.

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